बेमौसम
वारिशों का दौर फिजाओं की ऋतु में, कहर
बिजली कटौती का तपती दोपहरी की भीषण गर्मी में जो देखिये तो म.प्र. आईये, सुलझा आखिर राजपूताने के दखल से दिल्ली में किसान आत्महत्या का मसला ,
शहीद के दर्जे के साथ ताम्रपत्र भी
ना
सुनवाई को हुकूमत है, न हाकिम फरियाद
कोई करने को, जब जुल्मी ही हुकूमत और हाकिम है तो फरियाद
किसे करिये, दिल्ली मसले सुलझाने में राजस्थान के राजपूताने के
क्षत्रिय राजपूत रजवाड़े और चंबल का तोमर राजपरिवार भी सारे मामले में सक्रिय भूमिका
में रहा , नरेन्द्र सिंह तोमर को ‘’आप’’
द्वारा ‘’ चंबल’’ से दिल्ली में महत्वपूर्ण भूमिका में ले जाने की
तैयारी
नरेन्द्र सिंह तोमर
‘’आनंद’’
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(
प्रथम भाग) किश्तबद्ध आलेख
जल्लाद ही जब
हाकिम हो,
तो फरियाद क्या करना, अपराधी ही जब हुकूमत हो
तो सैयाद से क्या कहना ।
म.प्र. की हालत कोई
आजकल से नहीं ,
पूरे 15 वर्ष से बदस्तूर बेहद खराब व खस्ता है, कम से कम बिजली कटौती के मामले में, बिजली कटौती के
मामले में हर चुनाव पर ( सन 2003, सन 2008, सन 2013) म.प्र. की भाजपा सरकार द्वारा या भारतीय जनता पार्टी एक फर्जी व
फेक मुहिम चलाती है, हर बार उसका एक अलग नामकरण कर देती है ।
सन 2013 के चुनावों
के ऐन पहले ऐसी ही एक मुहिम चलाई गई और नाम दिया गया ‘’अटल ज्योति’’
योजना , इस योजना के बारे में प्रचार प्रसार ,
उद्घाटन समारोह आदि ( जो कि 90 फीसदी जगहों पर जनरेटर लगा कर किये गये
) पर करोड़ों अरबों रूपये म.प्र. की शिवराज सिंह सरकार ने महज बोतल पर लेबल चिपकाने
और ढक्कनबाजी में फूंक दिये ।
मगर म.प्र. में बिजली
फिर भी नहीं आई,
अटल ज्योति फिर भी नहीं आई , अलबत्ता करीब सन 2005
के अंत से म.प्र. में चल रही अघोषित बिजली कटौती का अंतराल काल बहुत बढ़ गया ।
म.प्र. में सन 2005 के
पश्चात कभी घोषित बिजली कटौती हुई हो, ऐसा पूरे 10 वर्ष के कालखंड में
तो कभी हुआ नहीं ।
अलबत्ता अफसरशाही और नेतृत्व
व राजनैतिक भ्रष्टाचार,
लालफीताशाही म.प्र. पर इस कदर हावी हुई कि ना जनता की सुनने वाला कोई
म.प्र. में हजारों किलोमीटर दूर तक बचा और ना कार्यवाही करने वाला ।
अंजाम ये हुआ कि 15 वर्ष
से बिजली को तरस रहे इस म.प्र. में इतने समय खंड में आज तक वह दिन आया ही नहीं जब बिजली
सप्लाई म.प्र. के एक भी शहर या गॉंव में कभी पूरे दिन या पूरी रात आई हो या रही हो, अपवाद
स्वरूप यदि शहर भोपाल के चंद हिस्सों को छोड़ दें या इंदौर ग्वालियर या जबलपुर के चंद
हिस्सों को छोड़ दें तो समूचे म.प्र. में ऐसा कोई स्थान नहीं मिलेगा , जहॉं से बिजली लापता न हो । .....
शेष अगले अंक में
जारी
आखिर
राजपूतों के दखल से सुलझ गया , दिल्ली की आप रैली
में किसान गजेन्द्र सिंह की आत्महत्या का मामला
दिल्ली से बड़ी खबर है
कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की किसान रैली में राजस्थान के दौसा जिला के किसान गजेन्द्र
सिंह द्वारा आत्महत्या का मामला तूल पकड़ जाने और समस्या बन जाने व समाधान से बाहर
हो जाने पर जब कोई राह केजरीवाल सरकार के सामने नहीं रही तब केजरीवाल के काम राजपूताने
के राजपूत ही आये,
राजस्थान के राजपूताने के क्षत्रिय राजपूत रजवाड़ों से बेहतर संबंध रखना
केजरीवाल के लिये वक्त पर मुफीद साबित हुआ, और वक्त जरूरत न केवल
काम आ गया बल्कि एक बहुत बड़े संकट से निजात दिलाकर , आने वाले
वक्त में राजस्थान , म.प्र. और उ.प्र. हरियाणा, बिहार, पंजाब में आम आदमी पार्टी की जड़े पुख्ता करने
का संकेत देक एक रास्ता बना गया ।
केजरीवाल सरकार के राजपूत
नेता संजय सिंह ,
राजेन्द्र प्रताप सिंह , दिल्ली सरकार के एक राजपूत
मंत्री राजस्थान के दंबंग व हुकुमदार असल क्षत्रिय
राजपूत नेताओं व रजवाड़े के सदस्यों के प्रतिनिधि मंडल के साथ पीडि़त परिवार के घर
पहुँचें व स्व. गजेन्द्र सिंह के परिवार के सदस्यों से मुलाकात की, और पारस्परिक वार्ता व अपेक्षित घोषणाओं एवं सहायता देने के ताम्रपत्र दिये
जाने की घोषणा के साथ मामले का पटाक्षेप हो गया ।
इस कार्यवाही या मुलाकात
के लिये चम्बल से दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर के वंशज नरेन्द्र सिंह तोमर
को भी फोन लगा कर बुलाया गया, लेकिन नरेन्द्र सिंह तोमर की तत्समय बहुत अधिक
व्यस्ततावश उन्होनें कहा कि ‘’ आप लोग चले जाईये , कोई दिक्कत हो या समस्या न सुलझे तो फोन से ही हमारी बात करा दें, इसके साथ ही नरेन्द्र सिंह तोमर ने पीडि़त परिवार को सहायता व मदद दिये जाने
के संबंध में अपनी कुछ राय व मशविरे दिये’’ , जिसे आप नेताओं व राजस्थान
के राजपूताने के क्षत्रिय राजपूत रजवाड़ों ने जस का तस शामिल व स्वीकार कर लिया ,
उल्लेखनीय है कि इंद्रप्रस्थ पति पांडव अर्जुन , दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर के वंशज ‘’जिन्हें
भारत’’ कहा पुकारा जाता है और उन्हीं के कारण इस देश का नाम भारत
है , उनके आदिकाल से नियुक्त किये गये वंशावली लेखक ( जगा) राजस्थान
के दौसा जिला में ही रहते हैं और तोमर राजपरिवार एवं पांडव वंश की सारी वंशावली दौसा
जिला के राजपूताने में ही आदिकाल से नियुक्त किये गये वंशावली लेखक परिवार द्वारा ही
आज दिनांक तक दर्ज की जाती रहीं हैं । और तोमर राजवंश को समस्त राजपूताने में मान्य
पूज्य व चक्रवर्ती सम्राट के रूप में क्षत्रियों राजपूतों में भारत ( महाभारत स्वामी
) के रूप में दर्जा व मान्यता है , और उनकी बात या इच्छा या आदेश
समस्त क्षत्रिय राजपूत बेहद खुशी से व स्वेच्छा से मानते व स्वीकारते हैं ।
केजरीवाल सरकार द्वारा
अब किसान गजेन्द्र सिंह को किसान आत्महत्याओं के बारे में देश भर में अलख जगा कर सारे
देश का ध्यान खींच कर क्रान्ति जगाने वाला महान देशभक्त शहीद का दर्जा दिया जायेगा, इसके
अतिरिक्त शहीद गजेन्द्र सिंह के परिवार के एक आश्रित को सरकारी नौकरी देने के साथ ही
कई अनेक अन्य सहायताओं व घोषाणाओं का ताम्रपत्र शहीद गजेन्द्र सिंह के परिवार को दिया
जायेगा । इस संबंध में बाकायदा दिल्ली सरकार की केबिनेट की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव
विधिवत अनुमोदित किया जायेगा ।
महिलाओं
के लिये ''साध्वी शब्द '' अशास्त्रीय,
अपरंपरागत एवं अमान्य है
- नरेन्द्र
सिंह तोमर ''आनन्द''
शब्द ''साध्वी''
सनातन धर्म परंपरा में मान्य व स्वीकृत एवं प्रमाणित शब्द नहीं है,
कुआरी स्त्रियों, अविवाहित स्त्रियों के
लिये ''कुमारी पूजन '' व ''देवी स्वरूपा पूजन की परंपरा अवश्य मान्य है , किन्तु
उनका सन्यास या विरक्ति विधान या तप विधान शास्त्रीय एवं राजाज्ञा या
शास्त्राज्ञा अनुकूल व वर्णित , प्रमाणिक एवं मान्य यथोचित
नहीं है । कुमारी, कुआरी, या अविवाहित
नारी का तप व सन्यास '' शास्त्र द्वारा शिखंडी'' के नाम से व स्वरूप से वर्णित व मान्य परंपरागत है, इसके अतिरिक्त भारत का कोई भी प्राचीन शास्त्र शब्द साध्वी को स्वीकार व
मान्य या उल्लेख नहीं करता, कुमारी देवीयों के रूप में जिनके
यंत्र केवल मात्र अधोमुखी त्रिकोणों द्वारा लिखे व बनाये जाते हैं , वे साक्षात अवतार या देवी रूवरूप में विद्यमान मान्य व स्वीकृत हैं ।
इसी प्रकार विधवा
महिलाओं या रजो व काम निवृत्त महिलाओं के लिये भी शब्द साध्वी प्रयुक्त व
उपरोक्तानुसार ही प्रयोग्य नहीं है । पथरा जाना या पत्थर की हो जाना ( भले ही वह
ईश्वर की साधना या तपस्यारत हो जाये) शब्द सनातन धर्म इस श्रेणी की महिलाओं के
लिये प्रयोग करता है ।
पति विरक्त, परित्यक्त
, गार्हस्थ्य विहीन या त्याज्य महिलाओं या स्वयं परित्याग
करके आई हुई महिलाओं के लिये , जैसे कि गौतम ऋषि की पत्नी
अहिल्या के लिये या माता शबरी के लिये भी साध्वी शब्द प्रयोग नहीं किया गया ,
साध्वी शब्द इस श्रेणी की महिलाओं के लिये भी प्रयोग नहीं किया जाता
, इन्हें भी पथराई हुई या पत्थर में तब्दील नारी की श्रेणी
में रखा गया है , देशी देहाती प्रचलित शब्द व भाषा में इनमें
से कुछ के लिये परंपरागत शब्द ''काग बिड़ारनी'' प्रयोग किया जाता है ।
श्रीमद भगवदगीता में
भी तथा अन्यान्य सनातन धर्म के ग्रंथों व शास्त्रों में '' शब्द
साधु '' मान्य व स्वीकार है , जिसका
तात्पर्यिक अर्थ .... सज्जन , निर्मल, निष्कपट, निश्छल , निष्काम,
आसक्ति हीन, मनुष्य के लिये गीता में वर्णित
धर्माचरण युक्त पुरूष के लिये किया गया व अन्य शास्त्रों ग्रंथों व राजाज्ञाओं के
अनुसार मान्य व स्वीकृत है , जबकि शब्द साध्वी अप्रचलन व
अमान्य व अस्वीकृत है , महिला के रूप कुल 84 होते हैं,
जिसमें से उसे या तो 64 योगनीयों ( जोगिन ) के रूप में या दस
महाविद्याओं के स्वरूप में या आदि शक्ति या त्रिमहामाया ( एक ही रूप है ) के
रूवरूप में, या नौ देवियों के रूप में स्वीकार व मान्य किया
जाता है , इन 84 रूपों के अलावा महिलाओं को अन्य जिन रूपों
में मान्य व स्वीकार किया गया है उनमें
देवी के विभिन्न अवतार, यक्षणी, जिन्न,
गंधर्व- अप्सरा, किन्नरी, पिशाचणी, शंखणी, हस्तिनी ,
पद्मिनी, , वृषणी, अश्वणी,
चन्द्रमा की सत्ताइस पत्नियों आदि आदि सहित 108 अन्य स्वरूप भी
स्वीकार किये गये हैं , स्त्री का धर्माचरण उसके पति से
सहबद्ध होता है, बिना पति की नारी धर्म विहीन रहती है,
पति चिन्तन और पति स्मरण ध्यान व वंदन समर्पण ही नारी का
सर्वश्रेष्ठ धर्माचरण एवं उसके मोक्ष मार्ग का सर्वोच्च साधन है ( विशेष आलेख इस
विषय पर जल्दी ही लायेंगें) ...... जय
श्री कृष्ण .... जय जय श्री राधे - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''